अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी
Atal Bihari Vajpayee Biography in Hindi
पूरा नाम – अटल बिहारी वाजपेयी
जन्म – 25 दिसंबर,1924
जन्म स्थान – ग्वालियर, मध्य प्रदेश
पिता का नाम – कृष्ण बिहारी वाजपेयी
माता का नाम – कृष्णा देवी
विवाह – नहीं हुआ
धर्म और जाति – हिन्दू, ब्राह्मण
राजनैतिक दल – भारतीय जनता पार्टी
कार्य और पद – राजनीति, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री
सम्मान – 2015 में भारत रत्न मिला
मृत्यु – 16 अगस्त, 2018 (93 वर्ष की उम्र में)
भारत के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके भारत रत्न से सम्मानित स्व. अटल बिहारी वाजपेयी एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ थे। अपनी सूझ-बूझ और दूरदर्शी सोच के कारण उन्होंने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए देश के हित में कई अहम फैसले लिए। उनके फैसलों ने देश को नई राह दिखाई। भारतीय राजनीति में उनका योगदान अहम है।
एक अच्छे राजनीतिज्ञ के साथ-साथ अटल विहारी वाजपेयी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वो एक अच्छे कवि और पत्रकार भी थे। वो अक्सर संसद में अपने भाषण के वक्त अपनी कविताओं को सुनाया करते थे जिन्हें सुनकर सब स्तब्ध हो जाते थे। वो अपनी कविताओं के माध्यम से अपने विरोधियों पर कटाक्ष करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर,1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के एक छोटे गांव में हुआ था। साधारण हिन्दू ब्राह्मण परिवार में जन्मे अटल जी के पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके परिवार में उनके माता-पिता के अलावा 7 भाई-बहन थे। अटल जी के पिता जी एक अध्यापक और महान कवि थे।
वाजपेयी जी की शुरुआती पढाई ग्वालियर में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में हुयी। उन्होंने BA की पढाई ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब-महारानी लक्ष्मी बाई कॉलेज) से की उसके बाद उन्होंने कानपुर के DAV कॉलेज से राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई की।
अटल जी ने अपने करियर में सबसे पहले RSS द्वारा पब्लिश एक मैगज़ीन में एडिटर का काम किया था। अटल जी ने शादी नहीं की थी परन्तु उन्होंने बी. एन. कॉल की दो बेटियों नंदिता और नमिता को गोद लिया था।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आज़ादी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया था। स्वतंत्रता आंदोलन के समय वो जेल भी गए थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रियता ग्वालियर में आर्य समाज आंदोलन की युवा शाखा आर्य कुमार सभा से शुरू हुई, जिसमें वे 1944 में महासचिव बने। 1939 में वे स्वयंसेवक के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में भी शामिल हुए।
बाबासाहेब आप्टे से प्रभावित होकर, उन्होंने 1940 से 1944 के दौरान आरएसएस के अधिकारियों के प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया, 1947 में प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता के लिए आरएसएस की शब्दावली) बन गए। उन्होंने विभाजन के दंगों के कारण कानून की पढाई छोड़ दी थी।
उन्हें उत्तर प्रदेश में एक विस्तारक (एक परिवीक्षाधीन प्रचारक) के रूप में भेजा गया और जल्द ही दीनदयाल उपाध्याय के समाचार पत्रों- राष्ट्रधर्म (एक हिंदी मासिक), पांचजन्य (एक हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक समाचार पत्रों स्वदेश और वीर अर्जुन के लिए काम करना शुरू कर दिया।
1942 तक, 16 वर्ष की आयु में, वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक सक्रिय सदस्य बन गए। यद्यपि आरएसएस ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए नहीं चुना था, अगस्त 1942 में, वाजपेयी और उनके बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 24 दिनों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था।
1951 में, वाजपेयी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध, पं. दीनदयाल उपाध्याय के साथ, आरएसएस से जुड़े हिंदू दक्षिणपंथी राजनीतिक दल, नवगठित भारतीय जनसंघ के लिए काम करने के लिए भेजा गया था। उन्हें दिल्ली में स्थित उत्तरी क्षेत्र के पार्टी प्रभारी के राष्ट्रीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। वह जल्द ही पार्टी नेता स्याम प्रसाद मुखर्जी के अनुयायी और सहयोगी बन गए।
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें इस चुनाव में सफलता हासिल नहीं हुई।
1957 में भारतीय आम चुनाव में, वाजपेयी ने लोकसभा, भारतीय संसद के निचले सदन में चुनाव लड़ा। वह मथुरा में राजा महेंद्र प्रताप से हार गए, लेकिन बलरामपुर से चुने गए।
दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु के बाद, जनसंघ का नेतृत्व वाजपेयी के पास चला गया। 1968 में वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और नानाजी देसाई, बलराज मध्होक व लाल कृष्ण आडवानी के साथ मिलकर पार्टी को आगे बढ़ाया। अटल बिहारी वाजपेयी 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष रहे।
लोकसभा में उनके वक्तृत्व कौशल ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने भविष्यवाणी की कि वाजपेयी किसी दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे।
वाजपेयी जी के वक्तृत्व कौशल ने उन्हें जनसंघ की नीतियों का सबसे स्पष्ट रक्षक होने का सम्मान दिलाया।
भारतीय जनसंघ पार्टी और भारतीय लोकदल पार्टी में गठबंधन हो गया जिसे ‘जनता पार्टी’ का नाम दिया गया। जनता पार्टी ने तेजी से अपना विस्तार किया और 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। जनता पार्टी के नेता मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और अटल जी को एक्सटर्नल अफेयर मिनिस्टर बनाया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे। इस दौरान उन्होंने चीन और पाकिस्तान का दौरा कर भारत के सम्बन्ध इन देशों के साथ सुधारने का प्रयास किया। अटल जी ने विदेशों में भारत की छवि सुधारने का प्रयास किया।
1979 में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद जनता पार्टी में दरार आ गयी जिससे जनता पार्टी बिखरने लगी।
1980 में जनता पार्टी नाखुश होकर अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवानी व भैरव सिंह शेखावत के साथ मिल कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) बनाई। BJP के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने। अटल जी 5 सालों तक भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अध्यक्ष रहे।
1984 में अटल जी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ 2 सीट से चुनाव हार गयी थी। 1986 में अटल जी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया। अटल जी के बाद लालकृष्ण आडवाणी जी को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। अटल जी 1986 में मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए।
लालकृष्ण आडवाणी जी के नेतृत्व में बीजेपी ने श्री राम जन्मभूमि में मंदिर बनाने को लेकर आंदोलन चलाया जिससे पार्टी को अपार जनसमर्थन मिला और 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका बहुत फायदा हुआ। बीजेपी ने 85 सीटें जीतीं और जनता दल को समर्थन देकर V. P. Singh के नेतृत्व में सरकार बनाई।
1993 में वाजपेयी जी संसद में विपक्ष के नेता बने और फिर 1996 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किये गए। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि पहले चुनाव जीता जाये फिर उम्मीदवार घोषित किया जाये।
1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसकी सबसे बड़ी वजह बाबरी मस्जिद का विध्वंस होना था जो बीजेपी, आरएसएस और विहिप के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था।
16 मई, 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली लेकिन बहुमत हासिल ना कर पाने के कारण 13 दिन बाद 1 जून, 1996 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
इसके बाद 1996-1998 के बीच दो बार अस्थिर सरकारें बनीं। इसके बाद बीजेपी ने दूसरे दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance- NDA) बनाया।
1998 के लोकसभा चुनाव में फिर से बीजेपी 182 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और एक बार फिर अटल जी प्रधानमंत्री बने। इस बार AIADMK द्वारा समर्थन वापस लेने पर 13 महीने बाद सरकार गिर गई।
मई 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारत की विजय के बाद अटल जी को मजबूत नेता के तौर पर देखा जाने लगा। कारगिल युद्ध के बाद 1999 में लोकसभा चुनाव कराये गए जिसमें एक बार फिर भाजपा के नेतृत्व वाले एन.डी.ए. को बहुमत मिला और अटल जी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने। इस बार उन्होंने पूरे 5 साल सफलता से सरकार चलाई।
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी जी ने देश के हित में काफी अहम फैसले लिए। जैसे:-
1. पोखरन में परमाणु परीक्षण:- पहले परमाणु परीक्षण के 24 साल बाद अटल जी ने प्रधानमंत्री बनने के 1 महीने बाद मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में 5 भूमिगत परमाणु परीक्षण करवाए जो कि सफल रहे थे। देश-विदेश इससे आश्चर्यचकित था क्योंकि भारत ने ये परीक्षण अमेरिका और यूरोपीय देशों के प्रतिबन्ध के वाबजूद किये गए थे।
2. कारगिल युद्ध और संसद पर हमले के दौरान लिए गए निर्णय:- 1999 में कारगिल में आतंकवादी और पाकिस्तानी सैनिक भारत की सीमा में घुस आये थे जिन्हें भारत की सेना और अटल जी की कूटनीति ने वापस खदेड़ दिया था।
13 दिसंबर, 2001 को चेहरे पर मास्क लगाए फर्जी ID के साथ कुछ आतंकवादी भारत की संसद में घुस आये और ताबड़तोड़ गोलियां चलाना शुरू कर दिया जिसमें कई सुरक्षा गार्ड शहीद हो गए। इसके बाद वाजपेयी सरकार द्वारा 2002 में आतंकवाद निरोधक अधिनियम लाया गया।
3. सड़कों का नेटवर्क:- देश के शहरों और गावों को जोड़ने के लिए अटल जी ने नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (NHDP) व प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) की शुरुआत की। वो स्वयं इसकी रिपोर्ट लेते थे।
4. FDI और IT सेक्टर को बढ़ावा:- अटल जी ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) को बढ़ावा दिया और साथ ही लोगों को IT सेक्टर के प्रति जागरूक किया।
5. सर्व शिक्षा अभियान:- बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अटल जी ने 2001 में सर्व शिक्षा अभियान चलाया था।
6. लाहौर बस सेवा:- भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने के लिए अटल जी ने 2001 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को भारत आने का न्योता दिया। दोनों के बीच आगरा में वार्ता हुयी और फिर लाहौर बस सेवा शुरू की गयी। अटल जी खुद बस में सफर कर पाकिस्तान गए थे।
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 2004 में अटल जी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद 2005 में अटल जी ने स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से रिटायर होने की घोषणा कर दी और 2009 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।
लम्बी बीमारी के चलते 93 वर्ष की आयु में 16 अगस्त, 2018 को इस महान राजनीतिज्ञ ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में अपनी आखिरी साँस ली।
भारत रत्न से सम्मानित अटल जी के निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गयी। 16-22 अगस्त तक सात दिनों के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राजकीय शोक की घोषणा की गयी। 7 दिनों के लिए राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी को निम्नलिखित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए-
1992 – अटल जी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
1993 – कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की उपाधि से नवाजा गया।
1994 – लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मानित किया गया।
1994 – बेस्ट सांसद अवार्ड मिला।
1994 – पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त अवार्ड मिला।
2015 – ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड’, (बांग्लादेश सरकार द्वारा प्रदत्त)
2015 – देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।
2018 – अगस्त 2018 में नया रायपुर का नाम बदलकर अटल नगर कर दिया गया।
अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से हमें बहुत प्रेरणा मिलती है। वो एक अच्छे राजनेता, कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता थे। उनके व्यक्तित्व की उनके विरोधी भी तारीफ किया करते थे। अटल जी ने हमेशा देश हित को प्राथमिकता दी और देश को मजबूत बनाने को लेकर काम किया।
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